Wednesday, 27 May 2020

माँ नर्मदाजी की परिक्रमा में हमेशा रखें इन बातों का ध्यान - नर्मदा परिक्रमा

नर्मदा परिक्रमा में रखें इन बातों का ध्यान


माँ नर्मदाजी की परिक्रमा में हमेशा रखें इन बातों का ध्यान

नमामि देवि नर्मदे वैराग्य, गंगा जी ज्ञान, यमुना जी भक्ति, ब्रह्मपुत्रा तेज, गोदावरी ऐश्वर्य, कृष्णा कामना की और सरस्वती जी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं।

मां नर्मदा से जुड़े बहुत से रहस्य आपको मालूम ही होंगे लेकिन हम आपको कुछ खास बात बताने जा रहे हैं जो आपकी परिक्रमा को सार्थक बनाने में आपको मदद रूप होंगे। मां नर्मदा वैराग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर व श्रद्धा से पूजन करता है।

माना जाता है कि माँ नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और तेरह दिनों में पूर्ण होती है। ऐसी एक मान्यता है कि द्रोणपुत्र अभी भी मां नर्मदा जी की परिक्रमा कर रहे हैं। नर्मदा के किनारे बहुत सारे दिव्य तीर्थ, ज्योर्तिलिंग, उपलिंग आदि स्थापित हैं। परिक्रमा वासी लगभ्ग 1312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते आ रहे हैं। परिक्रमा के दौरान 12 नियमों का पालन करने से उनपर माँ की अपार कृपा बरसती है।

इन 12 नियमों का करें पालन (परिक्रमा वासियों के सामान्य नियम)



- प्रतिदिन नर्मदा में ही स्नान करें ओर जल ग्रहण करें।

- प्रदक्षिणा में दान कभी भी ग्रहण न करें। 

- प्रदक्षिणा के दौरान विवाद, पराई निदा, चुगली से हमेशा बचें। 

- देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञ पूजनं, शौच, ब्रह्मचर्य, अहिंसा ओर शरीर तप का पालन करें।

- परिक्रमा के दौरान प्रतिदिन गीता, रामायणादि आदि का पाठ करते रहें।

- माई की कढ़ाई में प्रसाद बनाकर खिलाएं। 

- दक्षिण तट की प्रदक्षिणा नर्मदा तट से 5 मील और उत्तर तट की प्रदक्षिणा साढे सात मील से अधिक दूर से नहीं करना चाहिए।

- ध्यान रखें कहीं भी नर्मदा जी को पार न करें। 

- चतुर्मास के दौरान परिक्रमा न करें।

- सीधा सामान एक दो बार पाने योग्य ही साथ में रखें।

- बाल, नख न कटाएं। 

- परिक्रमा अमरकंटन से लेकर अमरकंटक में ही समाप्त करें।

- जब परिक्रमा परिपूर्ण हो जाये तब किसी भी एक स्थान पर जाकर भ्गवान शंकरजी का अभिषेक कर जल चढ़ावें। पूजाभिषेक करें कराएं। मुण्डनादि कराकर विधिवत् पुनः स्नानादि, नर्मदा मैया की कढाई उत्साह और सामर्थ्य के अनुसार करें। श्रेष्ठ ब्राह्मण, साधु, अभ्यागतों को, कन्याओं को भी भोजन अवश्य कराएं। फिर आशीर्वाद ग्रहण करें ओर संकल्प निवृत्त हो।

परिक्रमा मार्ग और दिशा : 

दक्षिण भाग की ओर गति करना ही प्रदक्षिणा कहलाता है। प्रदक्षिणा में व्यक्ति का दाहिना अंग देवी-देवता की ओर होता है। इसे परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है। देवी-देवता को उद्देश्य करके दक्षिणावर्त भ्रमण करना ही प्रदक्षिणा है।


नर्मदा परिक्रमा : 

वैसे सभी प्रमुख और पवित्र नदियों की परिक्रमा के बारे में पुराणों में उल्लेख मिलता है। गंगा, गोदावरी, महानदी, गोमती, कावेरी, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि। लेकिन हम यहां नर्मदा परिक्रमा की जानकारी दे रहे हैं। यह एक धार्मिक यात्रा है, जो पैदल ही पूरी करना होती है। लेकिन जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। उसने मरने से पहले वह सब कुछ जान लिया, जो वह यात्रा नहीं करके जिंदगी में कभी नहीं जान पाता। नर्मदा की परिक्रमा का ही ज्यादा महत्व रहा है।

नर्मदाजी की प्रदक्षिणा यात्रा में एक ओर जहां रहस्य, रोमांच और खतरे हैं वहीं अनुभवों का भंडार भी है। इस यात्रा के बाद आपकी जिंदगी बदल जाएगी। कुछ लोग कहते हैं कि ‍यदि अच्छे से नर्मदाजी की परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। श्रीनर्मदा प्रदक्षिणा की जानकारी हेतु तीर्थस्थलों पर कई पुस्तिकाएं मिलती हैं।

नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वतीजी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोडता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है।

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