सावन माह में शिवजी का रुद्राभिषेक विशेष रूप से किया जाता है। रुद्र अभिषेक यानी रुद्र को स्नान कराना। शिवजी का एक नाम रुद्र भी है। तांबे के लोटे से शिवलिंग पर जल की धारा अर्पित की जाती है। शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाते हैं, इस संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा ने बताया कि शिवजी को ऐसी चीजें खासतौर पर अर्पित की जाती हैं जो शीतलता देती हैं। जैसे जल, शहद, दूध, दही। ठंडक के लिए शिवजी चंद्र को भी अपने मस्तष्क पर धारण करते हैं।
प्राचीन समय में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तब हलाहल विष निकला था। इस विष की वजह से संपूर्ण सृष्टि के जीवों के प्राण संकट में पड़ गए थे। तब भगवान शिव ने ये विष ग्रहण किया, लेकिन इसे गले से नीचे नहीं जाने दिया। इस कारण शिवजी का गला नीला हो गया और इन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
विष पीने की वजह से शिवजी के शरीर तेज जलन होने लगी, गर्मी बढ़ने लगी। इस तपन से मुक्ति के लिए शिवजी को ठंडा जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है। भोलेनाथ को ठंडक देने वाली चीजें ही विशेष रूप से चढ़ाई जाती हैं, ताकि विष के गर्मी शांत रहे।
तांबे के लोटे से चढ़ाएं जल
शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाते समय शिवजी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। जल के साथ ही शिवलिंग पर दूध, दही, शहद भी चढ़ाना चाहिए। अभिषेक के बाद भगवान को बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल, भोग आदि चीजें अर्पित करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
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