आज उत्तर भारत में आधा सावन गुजर चुका है, लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत में आज से शुरू हुआ। इसे सावन की संधि वेला कहा जाता है। गुजरते और शुरू होते सावन का केंद्र। सावन, सिर्फ एक महीना नहीं है, ये 30 दिन की अवधि है परमात्मा, प्रकृति और प्रेम की निकटता पाने की। ये महीना शिव का है।
शिव यानी प्राण, बिना शिव के हम शव हैं। शिव जो प्राण के प्रतीक हैं, परमात्मा हैं, प्रकृति के देवता है, प्रेम के पर्याय हैं। सावन उन्हीं शिव की स्तुति का महीना है। सावन का महीना शिव के लिए है, यानी प्राण के लिए। जो हमारे भीतर बस रहा है। उसी शून्य रुप के साक्षात्कार का महीना।
हिंदी कैलेंडर का पांचवा महीना सावन होता है। आषाढ़ के बाद, भादौ के पहले। मानसून आ चुका होता है, प्रकृति करवट लेकर नया कलेवर धारण कर रही होती है। शिव पुराण कहता है कि ये महीना शिव के निकट आने का सबसे अच्छा समय है। वास्तव में, सावन हमारे जीवन के उतार-चढ़ाव का प्रतीक है।
जीवन के संघर्षमय समय के बाद जब सफलता की फुहारें गिरना शुरू होती है, तो उस समय मन जिस तरह प्रसन्न और संतुष्ट होता है, यही एहसास हमें सावन में होता है, चैत्र से शुरू हुई गरमी, वैशाख और ज्येष्ठ में सबसे ज्यादा तपाती हैं। आषाढ़ में कम होती गरमी और आसमान पर बिखरे बादल थोड़ी राहत देते हैं लेकिन गरमी से निजात दिलाता है सावन।
सावन चातुर्मास का पहला महीना होता है। यहीं से शुरू होती है भगवान की भक्ति और उत्सवों की चार महीने लगातार चलने वाली श्रंखला। सावन लगते ही हम उत्सव के मूड में आ जाते हैं।
- सावन प्रिय क्यों है शिव को
कई कहानियां हैं, कई मत हैं। लेकिन, जो अत्यधिक स्वीकार्य मत है वो है समुद्र मंथन की कथा। वैसे तो सारे महीने ही भगवान को प्रिय होते हैं। लेकिन शिव को सावन ही क्यों सबसे प्यारा है? इसके पीछे का कारण आपको समुद्र मंथन की कहानी में मिलेगा। अमृत की तलाश में वासुकि नाग को रस्सी और मदरांचल पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र को मथने निकले देवता और दानवों ने जैसे ही मंथन शुरू किया, पहली चीज निकलकर आई हलाहल विष। ऐसा विष जो समस्त सृष्टि को समाप्त कर दे।
विष्णु की सलाह पर, देवता पहुंचे शिव की शरण में। भोलेनाथ ने विष को पी लिया। निगला नहीं। गले में अटका लिया। नीलकंठ हो गए। लेकिन, हलाहल की गर्मी असहनीय थी। देवता शीतल जल चढ़ाने लगे। शिव को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। बिल्व पत्र भी लाए गए। उनकी तासीर भी ठंडी होती है। पानी की ठंडी फुहारें हलाहल की गरमी को शांत करने लगीं। बस, यहीं से सावन की फुहारें शिव को प्रिय हो गईं।
- शिव ही हैं सृष्टि के पहले गुरु
ब्रह्मा अगर सृष्टि के पिता हैं, तो शिव प्रथम गुरु। शांति, संतुष्टि, समानता और सहयोग का जो पाठ शिव ने संसार को पढ़ाया वो किसी अन्य देवता ने नहीं। देवता हों या दानव, सबको समान भाव से स्नेह दिया। देवताओं के गुरु बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य. ये दोनों ही दो संस्कृतियों के जनक हैं लेकिन इनके गुरु एक हैं, शिव। देवताओं ने समुद्र मंथन में दैत्यों में मदद ली। दोनों ने अमृत निकाला। भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप बनाकर देवताओं को अमृत पिला दिया। दैत्य उनके छल को समझ नहीं पाए। वे शिव की शरण में गए।
शिव ने कहा जब तय हुआ था अमृत दोनों का होगा तो देवताओं को छल नहीं करना था। उन्होंने तत्काल शुक्राचार्य को मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान दे दिया। ऐसी चिकित्सा पद्धति जिससे मरों को भी तुरंत जिंदा किया जा सके। शिव ने शरण में आए दैत्यों से भी भेद नहीं किया। दुनिया को ये सबक दिया, जो शरण में आए, मदद मांगे उसकी सहायता करो। कैलाश की बर्फीली पहाड़ी को घर बनाया, पशुओं की खाल को वस्त्र, भस्म को श्रंगार इस सब में भी सबसे ज्यादा संतुष्ट और प्रसन्न। ये हैं शिव के स्वरुप और कहानियों से जीवन में उतारी जाने वाली बातें। जो मिले, जैसा मिले उसी में संतुष्ट रहना सीख जाएं तो हम महानता के पथ पर बहुत आगे निकल सकते हैं।
- इस सावन को ऐसे करें सफल
तीन काम करें। आपका सावन सफल हो जाएगा। परमात्मा से निकटता आपको महसूस होगी। शास्त्र कहते हैं शिव संहार के देवता हैं और सृजन का मूल। आप शिव के निकट जाना चाहते हैं तो इस सावन से अपने जीवन में ये तीन काम शुरू करें।
फुहारों का सुख महसूस करेः आवश्यक नहीं है कि सुख और सफलता की झड़ी हर किसी के जीवन में निरंतर हो। सफलता और सुख थोड़े भी मिल रहे हैं तो उसका आनंद लें। हम अक्सर ज्यादा सुख की तलाश में छोटी-छोटी खुशियों को छोड़ते जाते हैं। सावन की फुहारों से सीखिए कि आनंद थोड़े में भी आता है। शिव संतुष्टि के देवता हैं, वैराग्य के प्रतीक। कम में खुश रहना और जो ना मिले उसके लिए मलाल ना करना, शिव की ही पूजा जैसा है। इससे आपका मन हल्का रहेगा। आप अपने भीतर के परमात्मा को महसूस कर पाएंगे।
प्रकृति के निकट जाएः इस सावन कोशिश करें दो-चार दिन प्रकृति के निकट बीतें। कम से कम एक पौधा लगाएं। शिव को प्रकृति के देवता हैं। एक पौधा लगाना भी, शिव के जलाभिषेक से कम नहीं है। पौधा लगाकर उसको पेड़ बनने तक सेवा करें।
मदद करना सीखेः अगर कोई आपसे मदद मांग रहा है तो छोटा है या बड़ा, दोस्त है या दुश्मन। इन सब का विचार किए बिना मदद करें। शिव समदृष्टा है। वे भेद बुद्धि से परे हैं। ना खुद किसी में भेद करते हैं, ना किसी ऐसे इंसान को पसंद करते हैं जो भेदभाव करता हो। अपना नजरिया बदलें। हर वर्ग के लिए समान भाव लाएं।
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