तमिलनाडु के तिरुवनमलाई जिले में शिवजी का अनूठा मंदिर है। इसे अन्नामलाईयार मंदिर भी कहते हैं। यह तमिलनाडु के तिरुवनमलाई शहर में अरुणाचला पहाड़ी पर है। यहां स्थापित शिवलिंग को अग्नितत्व का प्रतीक माना जाता है। 7वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर का चोल राजाओं ने 9वीं शताब्दी में विस्तार किया था। 10 हेक्टेयर में बने इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 217 फीट है। यहां हर साल नवंबर-दिसंबर में दीपम् उत्सव मनाया जाता है, जो 10 दिन तक चलता है। इस दौरान मंदिर के आसपास बड़ी मात्रा में दीपक जलाए जाते हैं। एक विशाल दीपक मंदिर की पहाड़ी पर जलाया जाता है जो दो-तीन किमी की दूरी से भी आसानी से देखा जा सकता है।
अग्नि रूप में होती है भगवान शिव की पूजा
ऐसी मान्यता है कि तिरुवनमलाई वह स्थल है जहां शिवजी ने ब्रह्माजी को श्राप दिया था। अरुणाचलेश्वर का मंदिर वहीं बना है। यह मंदिर पहाड़ की तराई में है। वास्तव में यहां अन्नामलाई पर्वत ही शिवजी का प्रतीक है। यहां स्थापित लिंगोत्भव नामक मूर्ति में प्रभु शिवजी को अग्नि रूप में, विष्णु जी को उनके चरणों के पास वराह रूप में और ब्रह्माजी को हंस के रूप बताया गया है। माना जाता है कि यह भगवान शिव का विश्व में सबसे बड़ा मंदिर है।
स्थापित हैं आठ शिवलिंग
पर्वत तक पहुंचने के रास्ते में इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरूति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई आठ शिवलिंग स्थापित हैं। लोगों की धारणा है कि इस मंदिर में नंगे पांव जाने से पापों से छुटकारा पाकर मुक्ति मिल सकती है।
कार्तिक पूर्णिमा पर होता है उत्सव
कार्तिक पूर्णिमा पर मंदिर में शानदार उत्सव होता है। इसे कार्तिक दीपम कहते हैं। इस मौके पर विशाल दीपदान किया जाता है। हर पूर्णिमा को परिक्रमा करने का विधान है, जिसे गिरिवलम कहा जाता है। श्रद्धालु यहां अन्नामलाई पर्वत की 14 किलोमीटर लंबी परिक्रमा कर शिवजी से कल्याण की प्रार्थना करते हैं।
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