Thursday, 1 October 2020

सुख और दुःख दोनों नजरिए का खेल है, अगर पॉजिटिव रहें तो अपने बुरे समय में भी कुछ अच्छा खोजा जा सकता है



इंसान को जो कुछ भी मिलता है, उसके लिए वह खुद जिम्मेदार होता है। जीवन में प्राप्त हर चीज उसकी खुद की ही कमाई है। जन्म के साथ ही भाग्य का खेल शुरू हो जाता है। हम अक्सर अपने व्यक्तिगत जीवन की असफलताओं को भाग्य के माथे मढ़ देते हैं। कुछ भी हो तो सीधा सा जवाब होता है, मेरी तो किस्मत ही ऐसी है।

हम अपने कर्मों से ही भाग्य बनाते हैं या बिगाड़ते हैं। कर्म से भाग्य और भाग्य से कर्म आपस में जुड़े हुए हैं। किस्मत के नाम से सब परिचित है लेकिन उसके गर्भ में क्या छिपा है कोई नहीं जानता। भाग्य कभी एक सा नहीं होता। वो भी बदला जा सकता है लेकिन उसके लिए तीन चीजें जरूरी हैं। आस्था, विश्वास और इच्छाशक्ति। आस्था परमात्मा में, विश्वास खुद में और इच्छाशक्ति हमारे कर्म में। जब इन तीन को मिलाया जाए तो फिर किस्मत को भी बदलना पड़ता है। वास्तव में किस्मत को बदलना सिर्फ हमारी सोच को बदलने जैसा है।

राम को 14 वर्षों का वनवास मिला, एक दिन पहले ही राजा बनाने की घोषणा की गई थी। जाना पड़ा जंगल में। अभी तक किसी की भी किस्मत ने इतनी भयानक करवट नहीं ली होगी। राम के पास दो विकल्प थे, या तो वनवास का सुनकर निराश हो जाते, अपने भाग्य को कोसते या फिर उसे सहर्ष स्वीकार करते। राम ने दूसरा विकल्प चुना। उन्होंने सिर्फ अपनी सकारात्मक सोच के साथ वनवास में भी अपने लिए फायदे की बातें खोज निकाली और घोषित कर दिया कि वनवास उनके लिए ज्यादा अच्छा है, बजाय अयोध्या के राजसिंहासन के।

अपनी वर्तमान दशा को यदि स्वीकार कर लिया जाए तो बदलाव के सारे रास्ते ही बंद हो जाएगे। भाग्य या किस्मत वो है जिसने तुम्हारे ही पिछले कर्मो के आधार पर तुम्हारे हाथों में कुछ रख दिया है। अब आगे यह तुम पर निर्भर है कि तुम उस पिछली कमाई को घटाओ, बढ़ाओ, अपने कर्र्मों से बदलो या हाथ पर हाथ धर कर बेठे रहो और रोते-गाते रहो कि मेरे हिस्से में दूसरों से कम या खराब आया है। भाग्यवाद और कुछ नहीं सिर्फ पुरुषार्थ से बचने का एक बहाना या आलस्य है जो खुद अपने ही मन द्वारा गढ़ा जाता है। यदि हालात ठीक नहीं या दु:खदायक हैं तो उनके प्रति स्वीकार का भाव होना ही नहीं चाहिये। यदि इन दुखद हालातों के साथ आप आसानी से गुजर कर सकते हैं तो इनके बदलने की संभावना उतनी ही कम रहेगी।

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Lord Ram Happiness and sorrow are both a game of perspective, if positive, then good can be found in your bad times.

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