महाभारत में कौरव और पांडवों का युद्ध चल रहा था। पांडवों ने कौरव सेना के कई बड़े महारथियों का वध कर दिया था। भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे। उस समय युद्ध के अंतिम चरण में एक दिन युद्ध विराम के बाद श्रीकृष्ण,पांडव और द्रौपदी भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे।
सभीने पितामह को प्रणाम किया। भीष्म को पांडवों से विशेष स्नेह था। वे उन्हें धर्म-अधर्म की नीतियां बता रहे थे। इस दौरान द्रौपदी ने कहा कि पितामह आज आप ज्ञान की बातें कर रहे हैं,
लेकिन उस दिन भरी सभा में जब मेरा चीर हरण हो रहा था, आप भी वहीं थे, तब आपका ये ज्ञान कहां गया था, मेरी मदद क्यों नहीं की, आपके सामने इतना बड़ा अधर्म हो रहा था, आप उस समय चुप क्यों थे?भीष्म पितामह ने कहा कि पुत्री मैं जानता था, एक दिन मुझे इन सवालों के जवाब जरूर देना होंगे, जिस दिन ये अधर्म हो रहा था, उस दिन भी मेरे मन में यही प्रश्न चल रहे थे। तब मैं दुर्योधन का दिया अन्न खा रहा था। वह अन्न जो पाप कर्मों के कमाया हुआ था। ऐसा अन्न खाने की वजह से मेरा मन-मस्तिष्क दुर्योधन के अधीन हो गया था। मैं ये सब रोकना चाहता था, लेकिन दुर्योधन के अन्न ने मुझे रोक दिया और ये अनर्थ हो गया।
द्रौपदी ने कहा कि आज आप ज्ञान की बातें कैसे कर रहे हैं? द्रौपदी के इस सवाल के भीष्म ने जवाब दिया कि अर्जुन के बाणों से मेरे शरीर से सारा रक्त बह गया है। ये रक्त भी दुर्योधन के दिए अन्न से ही बना था। अब मेरे शरीर में रक्त नहीं है, मैं दुर्योधन के अन्न के प्रभाव से मुक्त हो गया हूं, इसीलिए आज ज्ञान की ये बातें कर पा रहा हूं।
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