कुछ लोग उन चीजों के लिए दुखी होते हैं, जो उनके पास नहीं है या उनकी नहीं है। ऐसी स्थिति में तनाव बना रहता है और सुख नहीं मिल पाता है। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक व्यक्ति समुद्र किनारे टहल रहा था। तभी उसे चांदी की एक छड़ी मिली। छड़ी पाकर वह बहुत खुश हो गया। कुछ देर टहलने के बाद उसकी इच्छा हुई कि समुद्र में नहा लेना चाहिए। तभी उसने सोचा कि अगर छड़ी किनारे पर छोड़कर नहाने जाऊंगा तो कोई इसे उठाकर ले जाएगा। इसीलिए वह छड़ी लेकर ही समुद्र में नहाने चला गया।
कुछ देर बाद समुद्र में एक ऊंची लहर आई और उसके हाथ से छड़ी फिसल गई।
लहर के साथ ही वह छड़ी भी बह गई। चांदी की छड़ी खोने से व्यक्ति दुख हो गया। वह किनारे पर ही बैठ गया। तभी वहां एक संत टहलते हुए आए। उन्होंने व्यक्ति को दुखी देखा तो परेशानी की वजह पूछी। व्यक्ति ने संत से कहा कि मेरी चांदी की छड़ी समुद्र में बह गई है।संत ने पूछा कि छड़ी लेकर समुद्र में नहाने क्यों गए थे? व्यक्ति ने जवाब दिया कि अगर छड़ी किनार पर रखकर नहाने जाता तो कोई उसे उठाकर ले जाता। तब संत ने पूछा कि तुम चांदी की छड़ी लेकर नहाने क्यों आए थे? व्यक्ति ने जवाब दिया कि मैं छड़ी लेकर नहीं आया था। ये तो मुझे यहीं पड़ी हुई मिली थी। ये सुनते ही संत हंसने लगे। उन्होंने कहा कि जब वो छड़ी तुम्हारी थी ही नहीं तो उसके खोने पर दुखी क्यों होते हो? उन चीजों के लिए दुखी नहीं होना चाहिए जो हमारी है ही नहीं और जो चीजें हमारे पास नहीं है। हमें उन चीजों का आनंद उठाना चाहिए जो हमारे पास हैं। कभी भी दूसरों की चीजों के बारे में सोचकर दुखी नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को संत की बात समझ आई और वह वहां से अपने घर चला गया।
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