Saturday, 30 May 2020

एक नदी की कहानी जिसमें मिलते हैं 'ठाकुर जी', भगवान श्री विष्णु से जुड़ा है जिसका इतिहास

एक नदी की कहानी जिसमें मिलते हैं 'ठाकुर जी', भगवान श्री विष्णु से जुड़ा है जिसका इतिहास

ये कहानी उस पवित्र नदी की है जिसको नारायणी यानि गंडक नदी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि श्राप के कारण भगवान विष्णु (ठाकुर जी) पत्थर के रूप में वही रहते हैं । उस श्राप के प्रभाव से पत्थर रूपी भगवान को कीड़े कुतर भी देते हैं। हिमालय से निकलकर नेपाल से होकर कुशीनगर से पटना के पास गंगा में समाहित होने वाली यह नारायणी नदी को पुराणों ग्रंथों में काफी पवित्र बताया गया है।

हिमालय पर्वत शृंखला के धौलागिरि पर्वत के मुक्तिधाम से निकली यह गंडक नदी गंगा की सप्तधारा में से एक है। यह नदी तिब्बत व नेपाल से होते हुए उत्तर प्रदेश के महराजगंज, कुशीनगर से होते हुए बिहार के सोनपुर के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इस नदी को बड़ी गंडक, गंडकी, शालिग्रामी, नारायणी, सप्तगंडकी आदि नामों से भी जाना जाता है।

इस नदी के 1310 किलोमीटर लंबे सफर में तमाम धार्मिक स्थल आ जाते हैं। इसी नदी में महाभारत काल में गज और ग्राह (हाथी और घड़ियाल ) का युद्ध हुआ था, जिसमें गज की गुहार को सुनकर भगवान कृष्ण ने वहां पहुंचकर उसकी जान बचाई थी। जरासंध वध के बाद पांडवों ने भी इसी पवित्र नदी में स्नान किया था। माना जाता है कि इस नदी में स्नान व ठाकुर जी की पूजा करने से संसारिक आवागमन से मुक्ति मिल जाती है।

वृंदा के श्राप से यही पत्थर हो गए थे भगवान

गंडक नदी व भगवान के पत्थर बनने की बड़ी रोचक कथा ग्रान में वर्णित है। शंखचूड़ नामके दैत्य की पत्नी वृन्दा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वे भगवान को अपने हृदय में धारण करना चाहती थी। पतिव्रता वृन्दा के साथ भगवान श्री विष्णु छल करने के कारण वृंदा ने भगवान को श्राप देते हुए पाषाण (पत्थर) हो जाने व कीटों द्वारा कुतरे जाने का श्राप दे दिया था। तब से भक्त के श्राप का आदर कर भगवान पत्थर रूप में गंडक नदी में मिलते हैं।  भगवान विष्णु के जिस शालीग्राम रूप की पूजा होती है वह विशेष पत्थर यानि ठाकुर जी इसी नारायणी (गंडक ) नदी में मिलते है।

यहां गंडक नदी में ठाकुर जी के तैतीस प्रकार मिलते हैं...

गंडक नदी में जो ठाकुर जी की आकृति मिलती है उसमें भगवान विष्णु का वास होता है। नदी में पाए जाने वाले शिला जीवित होते हैं ओर व बढ़ते रहते हैं।

🌹 एक द्वार, चार चक्र श्याम वर्ण की शिला को लक्ष्मी जनार्दन कहते हैं।

🌹 दो द्वार ,चार चक्र, गाय के खुर वाले शिला को राघवेंद्र कहा जाता है।

🌹 दो सूक्ष्म चक्र चिन्ह व श्याम वर्ण शिला को दधिवामन कहा जाता है।

🌹 छोटे-छोटे दो चक्र व वनमाला के चिंह वाले शिला को श्रीधर कहा गया है।

🌹 मोटी व पूरी गोल, दो छोटे चक्र वाली शिला को दामोदर नाम दिया गया है।

इसी तरह अलग अलग शिला को रणराम, राजराजेश्वर, अनंत, सुदर्शन, मधुसूदन, हयग्रीव, नरसिंह, वासुदेव, प्रद्युम्न, संकर्षण, अनिरुद्ध जैसे नामों से पूजा जाता है।

आशा है आपको ये अनमोल बाते पसंद आई होगी।

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