Saturday, 3 October 2020

काम, परिवार या समाज आप कहीं भी व्यस्त रहें लेकिन खुद के लिए समय निकालना कभी ना भूलें



व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में हम कुछ खोते जा रहे हैं। हमारा अपना निजत्व। हमारा अपना निजी जीवन। सुबह से लेकर शाम तक आज हम जो कुछ भी कर रहे हैं वो अधिकांश काम सिर्फ दूसरों के लिए ही होते हैं। स्वयं के लिए जीने की समझ, संभावना और गुंजाइश तीनों ही हमारे भीतर से लगभग गुम होती जा रही है। यही कारण है कि हमारे कुछ निजी कामों में भी व्यवसायिक भाव आ गया है।

आज कई लोग यह भूल गए हैं कि खुद के लिए जीया कैसे जाए। हम जब परिवार में होते हैं, बच्चों के साथ होते या मित्रों के साथ, लेकिन दरअसल हम कभी खुद के साथ नहीं होते। अपने कुछ कर्मों अपनी ओर मोड़ लें। कर्म से खुद को भी जोड़ें। हम काम का आर्थिक लाभ देखना ठीक नहीं है।

अपने व्यवसायिक जीवन से थोड़ा वक्त निकालिए, कुछ ऐसा काम करने के लिए जिससे आपको सुकुन मिले। आपके भीतर एक नई ऊर्जा का संचार हो। वक्त को इस तरह बांटिए कि आपके हिस्से में भी थोड़ा सा समय जरूर रहे। अभी लोग अपना पूरा समय दूसरों के लिए रखते हैं। यहां तक कि भोजन और श्रंगार तक हम दूसरों के लिए ही कर रहे हैं, जबकि यह नितांत निजी मामला।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमारे शौक ही हमारा व्यवसाय बन जाता है। फिर आपको खुद को समय देना जरूरी नहीं होता लेकिन अमूमन ऐसा ही होता है कि हमारे शौक कुछ और होते हैं और काम कुछ और। काम का दबाव दिमाग पर होता है और शौक का दबाव दिल पर। जब हम काम छोड़कर शौक पूरा करने जाएंगे तो दिमाग इजाजत नहीं देगा और अगर शौक को छोड़कर काम करेंगे तो दिल झंझोड़ता रहेगा।

आइए एक बार फिर भागवत के एक प्रसंग में चलते हैं। सतयुग के राजा प्रियव्रत का जीवन देखिए। राजा थे, प्रजा की सेवा, सुरक्षा और सहायता में जीवन लगा दिया। देवताओं के भी कई काम किए, लेकिन उन्होंने कभी अपने निजत्व को नहीं खोया। थोड़ा समय वे हमेशा अपने लिए रखते थे। आखेट के बहाने प्रकृति के निकट रहते थे।

इससे उन्हें अच्छे काम करने की नई ऊजा्र मिलती थी। हम भी अपने लिए वक्त निकालें। दूसरे कामों को भी महत्व दें लेकिन हमेशा याद रखें, हमारे मन में संतुष्टि का भाव तभी आता है जब हम कुछ काम खुद के लिए करते हैं।

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Work, family or society, wherever you are busy but never forget to take time for yourself

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