देश के चारधाम में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे। हर साल विजयादशमी पर बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद करने की तिथि घोषित की जाती है। रविवार की सुबह करीब 11.30 बजे रावल ईश्वरप्रदास नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल, देवस्थानम् बोर्ड के अधिकारियों, मंदिर समिति से जुड़े लोगों और भक्तों की उपस्थिति में कपाट बंद करने की तिथि घोषित की गई है।
भुवनचंद्र उनियाल ने बताया कि जब सूर्य वृश्चिक राशि में रहता है, तब इसकी आधी अवधि तक मनुष्यों का बद्रीनाथ धाम में पूजा का अधिकार रहता है। इसके बाद यहां पूजा करने के अधिकार देवताओं का रहता है। बद्रीनाथ उत्तराखंड के चारधाम में भी शामिल है। ये तीर्थ अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। ये धाम करीब 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीतकाल में यहां का वातावरण बहुत ठंडा हो जाता है, बर्फबारी होती है, इस वजह से बद्रीनाथ मंदिर के कपाट शीत ऋतु में बंद कर दिए जाते हैं।
उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् बोर्ड के मीडिया प्रभारी हरीश के मुताबिक इन दिनों बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में देशभर के भक्तों को दर्शन कराए जा रहे हैं। इसके लिए बोर्ड की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।
कपाट बंद होने के बाद नारद मुनि करते हैं बद्रीनाथजी की पूजा
बद्रीनाथजी के कपाट खुलने के बाद यहां नर यानी रावल पूजा करते हैं और बंद होने पर नारदजी पूजा करते हैं। यहां लीलाढुंगी नाम की एक जगह है। यहां नारदजी का मंदिर है। कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ में पूजा का प्रभार नारदमुनि का रहता है।
कपाट बंद होने के बाद कहां रहते हैं रावल?
रावल ईश्वरप्रसाद नंबूदरी 2014 से बद्रीनाथ के रावल हैं। बद्रीनाथ कपाट बंद होने के बाद वे अपने गांव राघवपुरम् पहुंच जाते हैं। ये गांव केरल के पास स्थित है। वहां इनका जीवन सामान्य रहता है। नियमित रूप से तीन समय की पूजा करते हैं, तीर्थ यात्राएं करते हैं। जब भी बद्रीनाथ से संबंधित कोई आयोजन होता है तो वे वहां जाते हैं।
कैसे नियुक्त होते हैं रावल?
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा तय की गई व्यवस्था के अनुसार ही रावल नियुक्त किए जाते हैं। केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदरी संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी गांव से रावल नियुक्त किए जाते हैं। इसके लिए इंटरव्यू होते हैं यानी शास्त्रार्थ किया जाता है। योग्य व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जाता है। रावल आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं।
ये है मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यता
मान्यता है कि पुराने समय में भगवान विष्णुजी ने इसी क्षेत्र में तपस्या की थी। उस समय महालक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णुजी को छाया प्रदान की थी। लक्ष्मीजी के इस सर्मपण से भगवान प्रसन्न हुए। विष्णुजी ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था।
नर-नारायण की तपस्या स्थली
नर-नारायण ने बद्री नामक वन में तप की थी। यही उनकी तपस्या स्थली है। महाभारत काल में नर-नारायण ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतार लिया था। यहां श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री, श्री आदि बद्री इन सभी रूपों में भगवान बद्रीनाथ यहां निवास करते हैं।
कैसे पहुंच सकते हैं मंदिर तक
बद्रीनाथ के सबसे का करीबी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ये स्टेशन बद्रीनाथ से करीब 297 किमी दूर स्थित है। ऋषिकेश भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। बद्रीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित जोली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून में है। ये एयरपोर्ट यहां से करीब 314 किमी दूर स्थित है। ऋषिकेश और देहरादून से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस समय देशभर में कोरोना वायरस की वजह से आवागमन के सार्वजनिक साधन सुचारू रूप से चल नहीं रहे हैं। इन दिनों वायु मार्ग से या निजी वाहन से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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