भविष्योत्तर पुराण के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा पर कोकिला व्रत शुरू किया जाता है। जो कि सावन महीने की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन तक किया जाता है। इस व्रत में देवी पार्वती की पूजा कोयल के रूप में की जाती है। इस व्रत के दौरान महिलाएं अलग-अलग दिनों में शरीर पर तिल, आंवले और अन्य कई तरह की जड़ी-बुटियों का लेप कर के स्नान करती हैं। ये व्रत अंखड सौभाग्य, समृद्धि और संतान सुख के लिए किया जाता है।
- पौराणिक कथा के अनुसार पार्वती रूप में जन्म लेने से पहले देवी कोयल बनकर कई सालों तक नंदन वन में भटकती रहीं। इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए ये व्रत किया था। देवी पार्वती की पूजा और व्रत से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसलिए महिलाएं इस व्रत में देवी पार्वती और भगवान शिव दोनों की पूजा करती हैं।
कैसे किया जाता है ये व्रत
कोकिला व्रत में महिलाओं को पूरे महीने जड़ी-बूटियों से स्नान करना पड़ता है। इस व्रत में जड़ी-बूटियों को मिलाकर उससे कोयल बनाई जाती है। हर दिन दिन नहाने के बाद कोयल को देवी पार्वती का रूप मानकर पूजा की जाती है। देवी पार्वती के साथ भगवान शिव की पूजा का भी विधान है। व्रत के आखिरी दिन यानी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर श्रद्धा अनुसार जड़ी-बूटियों से बनी कोयल की आंखों की जगह रत्न और सोने या चांदी के पंख बनाए जाते हैं। कोयल को सजाकर उसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके बाद ब्राह्मण या सास-ससुर को उस कोयल कर दान किया जाता है।
हर आठ दिन तक किया जाता है अलग-अलग औषधियों से स्नान
महिलाएं इस व्रत के शुरूआती आठ दिनों तक शरीर पर आंवले का लेप लगाकर तीर्थ स्नान करती हैं। इसके बाद अगले आठ दिनों तक कूट, जटमासी, कच्ची और सूखी हल्दी, मुरा, शिलाजित, चंदन, वच, चम्पक एवं नागरमोथा पानी में मिलाकर नहाती हैं। फिर अगले आठ दिनों तक पिसी हुई वच को जल में मिलाकर स्नान किया जाता है। व्रत के आखिरी 6 दिनों में तिल, आंवला और अन्यऔषधियों से स्नान किया जाता है।
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