महाभारत में कई महत्वपूर्ण पात्र में से एक द्रोणाचार्य भी थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरव और पांडवों को युद्ध विद्या का ज्ञान दिया था। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य देवताओं के गुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। इनकी पत्नी का नाम कृपी और पुत्र का नाम अश्वत्थामा था।
द्रोणाचार्य का जन्म द्रोण नाम के एक बर्तन से हुआ था। इसी वजह से इनका नाम द्रोणाचार्य पड़ा। जब द्रोणाचार्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब उन्हें पता चला कि भगवान परशुराम ब्राह्मणों को अपना सर्वस्व दान कर रहे हैं। द्रोणाचार्य भी उनके पास गए और अपना परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से उनके सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र मांग लिए और उनके प्रयोग की विधि भी सीख ली।
अर्जुन को दिया था सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का वरदान
एक दिन द्रोणाचार्य गंगा नदी में स्नान कर कर रहे थे, तभी उनका पैर एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। द्रोणाचार्य उस मगरमच्छ से खुद भी बच सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए मगरमच्छ को मारा नहीं। अपने गुरु को इस हालत में देखकर सभी शिष्य घबरा गए। तब अर्जुन ने अपने बाणों से उस मगर को मार दिया। अर्जुन की वीरता देखकर द्रोणाचार्य प्रसन्न हो गए और वरदान दिया कि पूरी पृथ्वी पर तुम्हारे जैसा धनुर्धर नहीं होगा।
भीष्म के बाद कौरवों के सेनापति बने थे द्रोणाचार्य
महाभारत युद्ध में कौरव सेना के सेनापति भीष्म थे। भीष्म के बाद दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को अपना सेनापति बनाया। सेनापति बनते ही द्रोणाचार्य ने पांडवों की सेना का संहार करना शुरू किया। द्रोणाचार्य नए-नए व्यूह बनाकर पांडवों की सेना को नुकसान पहुंचा रहे थे। तब पांडवों ने एक योजना बनाई। योजना के अनुसार भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार डाला और द्रोणाचार्य के सामने चिल्लाने लगे कि अश्वत्थामा मारा गया। अश्वथामा की मृत्यु को सच मानकर गुरु द्रोण ने अपने अस्त्र-शस्त्र नीचे रख दिए और बैठकर ध्यान करने लगे। तभी धृष्टद्युम्न ने तलवार से गुरु द्रोण का वध कर दिया।
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