रविवार, 5 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। इस दिन गुरु पूजा करने की परंपरा है। गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। गुरु ही सही-गलत, धर्म-अधर्म की शिक्षा देते हैं। अगर कोई शिष्य गलत काम करता है तो उसका दोष गुरु को ही लगता है। स्वामी विवेकानंद के अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस का बहुत सम्मान करते थे। परमहंसजी के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताए गए हैं। अगर इन बातों को अपने जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई समस्याओं से बच सकते हैं। जानिए ऐसा ही एक प्रसंग…
प्रसंग के अनुसार एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्य से बात कर रहे थे। तब उन्होंने कहा कि ईश्वर एक ही है, उस तक पहुंचने के मार्ग अलग-अलग हैं। इसीलिए हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है ईश्वर तक पहुंचना। भक्ति के तरीके-तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।
ये बात सुनकर शिष्य ने कहा कि हम ये कैसे मान सकते हैं कि सभी रास्ते एक ही लक्ष्य तक पहुंच रहे हैं?
परमहंसजी ने कहा कि सभी रास्ते सत्य हैं। किसी भी एक रास्ते पर दृढ़ता से आगे बढ़ते रहने से एक दिन हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने शिष्य को समझाते हुए कहा कि किसी अनजाने घर की छत पर पहुंचना कठिन है। छत पर पहुंचने के कई रास्ते हो सकते हैं, जैसे सीढ़ियों से, रस्सी से या किसी बांस के सहारे हम ऊपर पहुंच सकते हैं। हमें इनमें से किसी एक रास्ते को चुनना होगा। जब एक बार किसी तरह छत पर पहुंच जाते हैं तो सारी स्थितियां स्पष्ट नजर आती हैं। नीचे से ऊपर देखने पर जो रास्ते भ्रमित कर रहे थे, वे ऊपर से नीचे देखने पर एकदम साफ-साफ दिखाई देते हैं।
हमें भक्ति करते समय किसी एक रास्ते पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए। दूसरे रास्तों को देखकर भटकना नहीं चाहिए। तभी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
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