Monday, 15 June 2020

पंचतंत्र के मित्रभेद अध्याय की सीख, कभी भी किसी मूर्ख को सलाह नहीं देनी चाहिए, वरना हमारी परेशानियां बढ़ जाती हैं



पंचतंत्र में छोटी-छोटी कथाओं में जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। पंचतंत्र में पांच भाग हैं, इसमें मित्रभेद नाम का एक अध्याय है। इस अध्याय में मित्र और शत्रु की पहचान से जुड़ी हुई कई कहानियां हैं। पंचतंत्र ग्रंथ की रचना पं. विष्णु शर्मा ने की थी। पं. विष्णु शर्मा आचार्य चाणक्य का ही एक नाम है।पंचतंत्र के मित्रभेद अध्याय में लिखा है कि-

उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये।

पयःपानं भुजडाग्नां केवल विषवर्धनम्।।

इस नीति में बताया गया है कि मूर्खों को दिया गया

उपदेश, उसी प्रकार उनके क्रोध को बढ़ाने वाला होता है, जिस प्रकार सापों को दूध पिलाने से उनके विष में वृद्धि होती है।

इस नीति से जुड़ी कथा के अनुसार किसी जगंल में एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ पर गोरैया का एक जोड़ा रहा करता था। एक बार जंगल में बहुत तेज बारिश होने लगी। बारिश से बचने के लिए गोरैया अपने बनाए हुए घोंसले में जाकर बैठ गई। थोड़ी देर में उस पेड़ के नीचे एक बंदर आकर खड़ा हो गया। वह पूरा भीग चुका था। ठंड से कांप रहा था। समर्थ होने पर भी वह मूर्ख बंदर अपने लिए कोई घर न बनाते हुए, बारिश में यहां-वहां घूमकर परेशानियों का सामना कर रहा था।

बंदर को परेशान होता देख गोरैया ने उसे खुद का एक घर बनाकर उसमें आराम से रहने की सलाह दी। गोरैया की सलाह को बंदर ने अपना अपमान माना। बंदर को लगा कि गोरैया के पास अपना घोंसला है और बंदर के पास खुद का घर न होने की वजह से वह गोरैया उसका मजाक उड़ा रही है। इसी बात से गुस्सा होकर उस मूर्ख बंदर ने उसका घोंसला तोड़ दिया और उसे भी बेघर कर दिया। इस छोटी सी कथा की सीख यही है कि हमें कभी भी किसी मूर्ख व्यक्ति को सलाह नहीं देनी चाहिए, वरना हमारी ही परेशानियां बढ़ जाती हैं।

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