शिक्षा पाने के लिए हर समय शुभ रहता है। शिक्षा ग्रहण करने में बिल्कुल भी देरी नहीं करनी चाहिए। महात्मा गांधी का शिक्षा के संबंध में एक विचार बहुत प्रचलित है। गांधीजी कहते थे कि एक सभ्य घर के समान कोई स्कूल नहीं है और अच्छे माता-पिता के समान को कोई शिक्षक नहीं है।
एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत अपने प्रवचन में शिक्षा का महत्व बता रहे थे। संत ने कहा कि शिक्षा से ही हमारा जीवन सफल हो सकता है। शिक्षा से हम सही-गलत का भेद समझ पाते हैं।शिक्षा से जुड़ी ये बातें सुनकर एक महिला संत के पास पहुंची और बोली कि गुरुजी बच्चे को शिक्षा देने की सही उम्र क्या होती है?
संत ने उससे पूछा कि आपके बच्चे की उम्र कितनी है?
महिला ने जवाब दिया कि गुरुजी मेरा बच्चा पांच साल का हो गया है। संत बोले कि माताजी आपने को पांच साल की देर कर दी है। बच्चे के जन्म के साथ ही उसे शिक्षा देने का काम शुरू कर देना चाहिए। शिक्षा पाने के लिए हर समय शुभ है।
हमें बच्चों को शुरू से ही अच्छे संस्कार देना चाहिए। बचपन से ही बच्चों का मन अच्छी बातों की ओर लगा रहेगा तो वे बड़े होकर बुरे कामों से दूर रहेंगे। अगर बचपन में शिक्षा से जुड़े लापरवाही की जाती है तो बच्चों का भविष्य बिगड़ सकता है।
महिला को संत की बातें समझ आ गई और अगले दिन से ही उसने अपने बच्चे को शिक्षा और ज्ञान पाने के लिए गुरुजी के यहां भेजना शुरू कर दिया।
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