दूसरों की बुराई करना भी एक पाप माना गया है। कुछ लोग अपनी चीजों को महत्व नहीं देते और दूसरों के सुख से ईर्ष्या करते हैं। जो लोग ये काम करते हैं, वे अशांत रहते हैं। इस बुराई से बचने पर व्यक्ति कई परेशानियों से बच सकता है। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक व्यक्ति हमेशा अपने पड़ोसियों के सुख को देखकर जलता था। वह सभी की बुराई करते रहता था।
दूसरों की बुराई करने की आदत की वजह से वह हमेशा अशांत रहता था। एक दिन वह भगवान को कोस रहा था कि उसे सुख-सुविधाएं क्यों नहीं दीं। तभी भगवान उसके सामने प्रकट हुए। भगवान ने उससे कहा कि तुम क्या चाहते हो?
उस व्यक्ति ने कहा कि भगवान मैं सफल होना चाहता हूं, मुझे भी सुख-सुविधाएं चाहिए, मैं चाहता हूं कि सभी लोग मेरी प्रशंसा करे। भगवान ने उस व्यक्ति को दो थैले दिए और कहा कि एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयां है और दूसरे थैले में तुम्हारी बुराइयां हैं।
पड़ोसी की बुराइयां वाले थैले को तुम अपनी पीठ पर टांग लेना और अपनी बुराइयां वाला थैला तुम्हें आगे टांगना है। अपनी बुराइयों को बार-बार खोलकर देखते रहना। ऐसा करोगे तो तुम सुखी हो जाओगे और तुम्हें सम्मान मिलेगा।
उस व्यक्ति ने दोनों थैले उठाए, लेकिन उसने एक भूल कर दी। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ पर लाद लिया और पड़ोसी की बुराइयों का थैला आगे लटका लिया।
अब व्यक्ति बुराइयों के दोनों थैले लेकर बाहर निकला और पड़ोसी की बुराइयां खुद भी देखता और दूसरों को भी दिखता। खुद की बुराइयां तो उसने पीछे टांग रखी थी।
भगवान के वरदान का उल्टा असर होने लगा, क्योंकि भगवान ने जैसा उसे बताया था, उसका उल्टा उस व्यक्ति ने कर दिया था। उसे दुख और अशांति मिलने लगी। वह व्यक्ति और ज्यादा परेशान रहने लगा।
प्रसंग की सीख
इस छोटे से प्रसंग में सुखी जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र छिपा है। लोग अपनी बुराइयां तो पीठ पर टांगकर रखते हैं और दूसरों की बुराइयां आगे लटका लेते हैं। खुद की बुराइयां पीठ पर टंगी होती हैं, इस वजह से दिखाई नहीं देती, दूसरों की बुराइयां आगे रहती हैं तो खुद भी देखते हैं और दूसरों को भी दिखाते हैं। इसी वजह से जीवन अशांत रहता है।
हमें खुद की बुराइयां देखनी चाहिए, उन्हें सुधारना चाहिए। दूसरों की बुराइयां नहीं अच्छाइयां देखनी चाहिए। तभी जीवन में सुख-शांति बढ़ सकती है।
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