जब भी हमारा मन अशांत होता है तब हमें कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लेना चाहिए। ऐसी स्थिति में निर्णय में गलती हो सकती है, जिससे भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मन शांत होने की प्रतिक्षा करें और इसके बाद ही कोई निर्णय लें। अशांत मन के संबंध में गौतम बुद्ध का एक प्रसंग प्रचलित है। जानिए ये प्रसंग…
प्रसंग के अनुसार एक व्यक्ति का उसकी पत्नी के साथ तालमेल नहीं बन पा रहा था, उनके बीच रोज झगड़े होते थे। इस वजह से उसका मन अशांत रहता था। तंग आकर एक दिन वह जंगल में चला गया। उस समय गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ जंगल से गुजर रहे थे।
दुखी व्यक्ति ने बुद्ध को सारी बातें बताई और कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं, कृपया मुझे अपना शिष्य बना लें। बुद्ध इस बात के लिए मान गए। अगले दिन सुबह के समय बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा कि मुझे प्यास लगी है, पास की नदी से पानी ले आओ।
बुद्ध के लिए पानी लेने वह नदी किनारे गया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि जंगली जानकरों की उछल-कूद की वजह से पानी गंदा हो गया है। नीचे जमी हुई मिट्टी ऊपर आ गई है। गंदा पानी देखकर नया शिष्य वापस आ गया। बुद्ध के पास पहुंचकर उसने इस बात की जानकारी दे दी।
कुछ देर बाद बुद्ध ने फिर से उसे पानी लाने के लिए भेज दिया। इस बार नदी किनारे पहुंचकर उसने देखा कि पानी एकदम साफ था, नदी की गंदगी नीचे बैठ चुकी थी। ये देखकर वह हैरान था। पानी लेकर वह बुद्ध के पास पहुंचा। उसने पूछा कि तथागत आपको कैसे मालूम हुआ कि अब पानी साफ मिलेगा।
बुद्ध ने उसे समझाया कि जानवर पानी में उछल-कूद कर रहे थे, इस वजह से पानी गंदा हो गया था। लेकिन, कुछ देर जब सभी जानवर वहां से चले गए तो नदी का पानी शांत हो गया, धीरे-धीरे पूरी गंदगी नीचे बैठ गई। ठीक इसी तरह जब हमारे जीवन में बहुत सी परेशानियां आ जाती हैं तो हमारे मन की शांति भंग हो जाती है। ऐसी स्थिति में ही हम गलत निर्णय ले लेते हैं। हमें मन की उथल-पुथल शांत होने का इंतजार करना चाहिए। धैर्य रखना चाहिए। मन शांत होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए।
बुद्ध की बातें सुनकर व्यक्ति को अपने जीवन की याद आ गई। उसे समझ आ गया कि उसने घर छोड़ने का निर्णय अशांत मन से लिया था, जो कि गलत है। उसने बुद्ध से घर लौटने की आज्ञा ली और वह अपनी पत्नी के पास चला गया। इसके बाद उसके वैवाहिक जीवन की परेशानियां खत्म हो गई। अब वह शांत रहकर ही सारी समस्याओं को सुलझाने लगा था।
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