Friday, 11 September 2020

पितृपक्ष की एकादशी 13 सितंबर को, इस दिन विष्णु पूजा और श्राद्ध करने से मृतात्माओं को मिलता है मोक्ष



13 सितंबर को अश्विन महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि है। इसे इंदिरा एकादशी कहा जाता है। श्राद्ध के दिनों में आने वाली ये एकादशी बहुत ही खास मानी जाती है। काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्मशास्त्रों के जानकार पं. गणेश मिश्र के मुताबिक इस तिथि पर तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाने से मृतात्माओं को मोक्ष मिलता है। उपनिषदों में भी कहा गया है कि भगवान विष्णु की पूजा से पितृ संतुष्ट होते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा और व्रत रखने का विधान है। कोई पूर्वज जाने-अनजाने में किए गए अपने किसी पाप की वजह से यमराज के पास दंड भोग रहे हों तो विधि-विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत करने उन्‍हें मुक्ति मिल सकती है। पं. मिश्र ने बताया कि एकादशी पर आंवला, तुलसी, अशोक, चंदन या पीपल का पेड़ लगाने से भगवान विष्णु के साथ ही पितर भी प्रसन्न होते हैं।

इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व

  1. इंदिरा एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है। इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को पूर्वजों के नाम पर दान कर दिया जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और व्रत करने वाले को बैकुण्ठ प्राप्ति होती है।
  2. पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला भी स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
  3. पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और उससे अधिक पुण्य एकमात्र इंदिरा एकादशी व्रत करने से मिल जाता है।

एकादशी व्रत और पूजा विधि

  1. इस एकादशी के व्रत और पूजा की विधि अन्य एकादशियों की तरह ही है, लेकिन सिर्फ अंतर ये है कि इस एकादशी पर शालिग्राम की पूजा की जाती है।
  2. इस दिन स्नान आदि से पवित्र होकर सुबह भगवान विष्णु के सामने व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। अगर पितरों को इस व्रत का पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प में भी बोलें।
  3. इसके बाद भगवान शालिग्राम की पूजा करें। भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं। पूजा में अबीर, गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवित, फूल होने चाहिए। इसके साथ ही तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं।
  4. फिर एकादशी की कथा पढ़कर आरती करनी चाहिए। इसके बाद पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।

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Ekadashi in Pitru Paksha: Indira Ekadashi Vrat Vidhi Significance and importance

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