सुखी जीवन के लिए हमें हर हाल में संतुष्ट रहना चाहिए। जो लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं, वे असंतुष्ट रहते हैं और दुखी रहते हैं। सुखी रहने का मूलमंत्र यह है कि हमें हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेने की कला आनी चाहिए। ये बात एक लोक कथा से समझ सकते हैं।
प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक विद्वान संत के आश्रम में एक नया शिष्य आया। वह अपने जीवन में बहुत दुखी था, इस वजह से उसने संन्यास धारण करने का निश्चय किया। संत ने उसकी बात समझी और कहा कि तुम अब यहीं रहो और आश्रम में गाय की देखभाल करो, सुबह-शाम दूध का सेवन करो। गायत्री मंत्र का जाप करो।
संत की बात सुनकर नया शिष्य खुश हो गया, क्योंकि उसे सुबह-शाम ताजा दूध मिलेगा। व्यक्ति ने गाय की देखभाल शुरू कर दी, कुछ ही दिनों में वह तंदुरुस्त हो गया। उसने संत से कहा कि गुरुदेव अब बहुत आनंद है। मैं गाय की देखभाल करता हूं, दूध का सेवन करता हूं। अब मैं खुश हूं। गुरु ने कहा कि अच्छी बात है।
कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा। इसके बाद एक दिन गाय आश्रम से कहीं चली गई। बहुत खोजने के बाद भी शिष्य को गाय नहीं मिली। गाय न मिलने की वजह से वह शिष्य बहुत दुखी था। उसने अपने गुरु को इस बात की जानकारी दी। गुरु ने कहा कि ये भी अच्छी बात है। ये बात सुनकर शिष्य हैरान था, लेकिन वह कुछ बोला नहीं।
शिष्य आश्रम के अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया। इसी तरह थोड़ा समय व्यतीत हो गया। एक दिन वह गाय फिर से मिल गई। शिष्य खुश हो गया। उसने गुरु से कहा कि गाय मिल गई है। गुरु ने कहा है कि ये भी अच्छी बात है। शिष्य ये सुनकर हैरान था। उसने गुरु से पूछा कि गुरुदेव जब मैंने आपको बताया था कि गाय के दूध सेवन से मैं आनंद में हूं, तब आपने कहा था ठीक है। जब गाय गुम हो गई, तब भी आपने कहा था कि ये भी अच्छी बात है और जब गाय मिल गई है, तब भी आप यही कह रहे हैं कि ये भी अच्छी बात है।
गुरु ने शिष्य से कहा कि यही सुखी जीवन का मूलमंत्र है। हमारे जीवन में जैसी परिस्थितियां चल रही हैं, हमें उन्हें समझना चाहिए। परिस्थितियों के अनुसार खुद ढाल लेना चाहिए। इस बात का ध्यान रखने पर ही हमें संतुष्टि मिल सकती है।
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