हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को देवी राधा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन राधाष्टमी पर्व मनाया जाता है। ये पर्व भगवान कृष्ण के जन्म के 15 दिन बाद आता है। इस साल ये पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। राधाष्टमी पर मथुरा जिले के बरसाना गांव में राधा जी की विशेष पूजा की जाती है। बरसाने में एक पहाड़ी पर राधा जी का खूबसूरत मंदिर है। जिसे राधारानी महल भी कहा जाता है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। भक्त मंगल गीत गाते हैं और एक-दूसरे को बधाइयां भी देते हैं।
बरसाना राधा जी की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। ये एक पहाड़ी की नीचे बसा है। नर्मदापुरम (होशंगाबााद) के भागवत कथाकार पं. हर्षित कृष्ण बाजपेयी बताते हैं कि ग्रंथों में बरसाना का पुराना नाम ब्रहत्सानु, ब्रह्मसानु और वृषभानुपुर बताया गया है। राधाजी का जन्म यमुना के किनारे रावल गांव में हुआ था। यहां राधा जी का मंदिर भी है। लेकिन बाद में राजा वृषभानु बरसाना में जाकर रहने लगे। राधा जी की माता का नाम किर्तिदा और उनके पिता वृषभानु थे। बरसाना में राधा जी को प्यार से लाड़ली जी कहा जाता है।
राधाष्टमी पर सबसे पहले मोर को खिलाया जाता है भोग
लाड़ली जी के मंदिर में राधाष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। राधाजी को लड्डुओं और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग का भोग लगाया जाता है और उस भोग को सबसे पहले मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। इस अवसर पर राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाअष्टमी का त्योहार मनाते हैं।
250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है ये मंदिर
राधा जी का यह प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है, जो लाल और पीले पत्थर का बना है। राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य और सुंदर मंदिर का निर्माण राजा वीरसिंह ने 1675 ई. में करवाया था। बाद में स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरों को इस मंदिर में लगवाया गया। राधा रानी का यह सुंदर और मनमोहक मंदिर करीब ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है और इस मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। राधा श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है।
श्याम और गौरवर्ण के पत्थर
बरसाने की पुण्यस्थली हरी-भरी और मन को अच्छी लगने वाली है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर हल्के काले और सफेद दोनों तरह के रंगों के है। जिन्हें यहां के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाने से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंदजी का घर था। बरसाना-नंदगांव रास्ते पर संकेत नाम की स्थान है। मना जाता है यहां कृष्ण और राधा पहली बार मिले थे। यहां भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुंदर मेला होता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।
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