शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगमें से एक उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में हर रोज भस्म आरती होती है। भस्म से ही शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और शिवपुराण कथाकार पं. मनीष शर्मा के अनुसार शिवजी को भस्म विशेष प्रिय है। यही भगवान का मुख्य श्रृंगार है।
सभी देवी-देवता श्रृंगार के लिए सोने-चांदी और हीरे-मोती के आभूषण धारण करते हैं, लेकिन शिवजी का स्वरूप सबसे निराला है। महादेव श्रृंगार के भस्म और नाग धारण करते हैं। महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। इसके पीछे कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं।
भस्म है सृष्टि का सार
भस्म को सृष्टि का सार माना गया है यानी एक दिन पूरी सृष्टि का अंत होगा और ये राख में बदल जाएगी। यही राख यानी भस्म शिवजी धारण करते हैं। इसका संदेश यह है कि जब संसार का नाश होगा तो सभी प्राणियों की आत्मा और पूरी सृष्टि शिवजी में ही विलीन हो जाएगी। शास्त्रों की मान्यता है कि समय-समय पर प्रलय होता है और सबकुछ नष्ट हो जाता है। इसके बाद फिर से ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करते हैं। ये क्रम अनवरत चलता रहता है।
कैसे तैयार होती है भस्म
शिवपुराण के अनुसार भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बैर के पेड़ की लकडि़यों को एक साथ जलाया जाता है। मंत्रोच्चारण किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छाना जाता है। इस प्रकार तैयारी की गई भस्म को शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है।
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