2 जुलाई गुरुवार यानी आज आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि दोपहर करीब 3.20 से शुरू हो जाएगी। इसलिए भगवान शिव की पूजा और प्रदोष व्रत आज शाम को ही किया जाएगा। गुरुवार को प्रदोष व्रत होने से सौभाग्य और संतान प्राप्ति का योग बन रहा है। इसमें प्रदोष काल के दौरान भगवान शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। सूर्यास्त के बाद यानी दिन और रात के मिलन की घड़ी को प्रदोष काल कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार इस समय भगवान शिव की पूजा से हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं और दांपत्य सुख मिलता है।
- ये साल का आखिरी गुरु प्रदोष संयोग है। इसके पहले 18 जून और 20 फरवरी को गुरुवार के साथ त्रयोदशी तिथि थी। अब अगले साल ऐसा योग बनेगा। गुरुवार के संयोग में प्रदोष व्रत करने से दुश्मनों पर जीत मिलती है। गुरु प्रदोष व्रत करने से यश बढ़ता है। पुत्र प्राप्ति होती है। सेहत में सुधार होता है। बुद्धि और ज्ञान बढ़ता है। बृहस्पति भगवान शिव की पूजा का कारक ग्रह है। इसलिए इस दिन शिव पूजा करने से उसका फल और भी बढ़ जाता है। ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा ने सबसे पहले भगवान शिव का ये व्रत किया था।
व्रत से जुड़ी मान्यता
- ऐसी मान्यता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रजत भवन में नृत्य करते हैं। इस दौरान देवता भगवान शिव की स्तुति करते हैं। इसलिए इस समय पूजा करने से सभी दोष खत्म हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत में भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाती है।
- यह व्रत सोमवार के दिन पड़ता है और जो भी इस व्रत को करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। मंगलवार को प्रदोष व्रत करने वाले को रोगों से मुक्ति मिलती है। ये व्रत अगर बुधवार को हो तो हर तरह की इच्छा पूरी होती हैं। गुरुवार को प्रदोष व्रत करने वाले के शत्रुओं का नाश होता है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भृगु प्रदोष कहा जाता है। जीवन में सौभाग्य वृद्धि के लिए ये प्रदोष व्रत किया जाता है। शनिवार को आने वाले प्रदोष व्रत को करने से पुत्र प्राप्ति होती है और रविवार को प्रदोष व्रत करने से निरोगी रहते हैं।
प्रदोष व्रत और पूजा की विधि
प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह व्रत निर्जल यानी बिना पानी के किया जाता है। इस व्रत की विशेष पूजा शाम को की जाती है। इसलिए शाम को सूर्य अस्त होने से पहले एक बार फिर नहा लेना चाहिए। साफ सफेद रंग के कपड़े पहन कर पूर्व दिशा में मुंह कर के भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। पूजा की तैयारी करने के बाद उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंह रखकर भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
- प्रदोष व्रत के लिए जल्दी उठकर नहाएं और शिवजी की पूजा और व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन व्रत करने के बाद सूर्यास्त से पहले नहाकर सफेद और साफ कपड़े पहनें।
- पूजा की तैयारी करें। जहां पूजा करनी हो उस जगह गंगाजल छिड़कें।
- सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। फिर भगवान शिव-पार्वती और उसके बाद बृहस्पति देव की पूजा करें।
- शिवजी का अभिषेक करें। पूजा में खासतौर से बिल्वपत्र, मदार के फूल और धतूरा शिवजी को चढ़ाएं।
- इसके बाद शिवजी को धूप-दीप दर्शन करवाने के बाद कथा और फिर आरती करें।
- भगवान को नैवेद्य लगाएं और प्रसाद बांट दें।
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