दान-पुण्य करने का विशेष महत्व बताया गया है। जरूरतमंद लोगों को दान करने से धर्म लाभ मिलता है। इस शुभ में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक राजा अपने राज्य में घूम रहा था। तभी उसने एक भिखारी से कहा कि आप मुझे भीख में थोड़ा सा अनाज दे दीजिए। मेरे गुरु ने कहा है कि आप मुझे किसी भिखारी से भीख लेनी है, इस उपाय से अपने राज्य का संकट दूर हो जाएगा।
राजा की बात सुनकर भिखारी हैरान हो गया। एक राजा उससे भीख मांग रहे हैं। वह मना नहीं कर सकता था। उसने अपनी झोली में हाथ डाला, मुट्ठी में अनाज लिया और सोचने लगा कि इतना अनाज राजा को दे दूंगा तो मैं क्या करूंगा, ये अनाज तो मेरा है, मुझे राजा को ज्यादा अनाज नहीं देना चाहिए। उसने मुट्ठी में से कुछ अनाज झोली में ही छोड़ दिया और थोड़ा सा राजा को दे दिया।
राजा ने भिखारी से अनाज लेकर अपने मंत्री को दे दिया। मंत्री ने अनाज के बराबर वजन की एक पोटली भिखारी को दे दी और कहा कि इसे घर जाकर खोलना। कुछ देर बाद भिखारी घर पहुंच गया। उसने पूरी बात पत्नी को बताई। पत्नी ने झोली में से पोटली निकली और खोली तो उसमें सोने के सिक्के थे। ये देखकर दोनों को समझ आ गया कि राजा ने भीख के बराबर सोने के सिक्के दिए हैं।
भिखारी को और उसकी पत्नी, दोनों को इस बात पछतावा हो रहा था कि भीख में थोड़ा सा अनाज क्यों दिया? ज्यादा अनाज देता तो राजा ज्यादा सोना देता।
इस छोटी सी कथा की सीख यह है कि दान करते समय कंजूसी नहीं करनी चाहिए। अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करते रहने से हमारे पुण्य में बढ़ोतरी होती है, धर्म लाभ मिलता है। हमेशा प्रसन्न होकर जरूरतमंद लोगों को भिक्षा देनी चाहिए। दिए हुए दान का जिक्र कभी नहीं करना चाहिए। वरना दान का पूरा फल नहीं मिलता है।
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