अधिकतर लोग भगवान को तभी याद करते हैं, जब वे मुसीबत में होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। भगवान की भक्ति हर पल करनी चाहिए। दुख में ही नहीं, सुख के दिनों में भी प्रार्थना करनी चाहिए। भक्त के भाव पवित्र होना चाहिए, तभी भगवान की कृपा मिल सकती है। भक्ति कैसी होनी चाहिए, ये हम भक्त ध्रुव की कथा से समझ सकते हैं।
भागवत में भक्त ध्रुव की कथा आती है। ध्रुव के पिता की दो पत्नियां थीं। पिता को अपनी दूसरी पत्नी से अधिक प्रेम था, जो कि ज्यादा सुंदर थी। उसी से पैदा हुए पुत्र से ज्यादा स्नेह भी था। एक दिन
एक सभा के दौरान ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठने के लिए आगे बढ़ा तो सौतेली मां ने उसे रोक दिया। उस समय ध्रुव पांच साल का ही था। वह रोने लगा।सौतेली मां ने कहा जा जाकर भगवान की गोद में बैठ जा। इसके बाद ध्रुव ने अपनी मां के पास जाकर पूछा कि मां भगवान कैसे मिलेंगे?
मां ने जवाब दिया कि इसके लिए तो जंगल में जाकर घोर तपस्या करनी पड़ेगी। बालक ध्रुव ने जिद पकड़ ली कि अब भगवान की गोद में ही बैठना है। वह जंगल की ओर निकल पड़ा।
एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्रुव ने ध्यान लगाया, लेकिन उसे कोई मंत्र नहीं आता था। उस समय वहां नारदजी पहुंचे और उन्होंने बालक ध्रुव को गुरु मंत्र दे दिया। मंत्र था ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:। इसके बाद बालक ध्रुव मंत्र जपने लगा। कोई और इच्छा नहीं थी, सिर्फ एक भाव की भगवान की गोद में बैठना है।
बालक ध्रुव मन से भगवान को पुकारने लगा। बच्चे का निर्दोष भावों से भगवान विष्णु भी पिघल गए। वे प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। ध्रुव ने कहा मुझे अपनी गोद में बैठा लीजिए। भगवान ने ये इच्छा पूरी कर दी।
ना कोई प्रसाद और ना कोई चढ़ावा, पांच साल के ध्रुव ने सिर्फ भावों से ही भगवान को प्रसन्न कर लिया था। इस भक्ति की वजह से ध्रुव का राज्य में बहुत सम्मान हुआ। पिता ने पुत्र ध्रुव को अपना सिंहासन भेंट कर दिया।
भक्ति के पवित्र भाव ही हमें भगवान की कृपा दिलवा सकते हैं। इसीलिए सुख हो या दुख, हर पल भगवान का ध्यान करते रहना चाहिए।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar
https://ift.tt/2NtfDiH
No comments:
Post a Comment