हिंदू कैलेंडर के चौथे महीने का नाम है आषाढ़ होता है। यह महीना ज्येष्ठ के बाद और सावन के पहले आता है। इस महीने से ही वर्षा काल की शुरुआत हो जाती है। काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्म के जानकार पं. गणेश मिश्र ने बताया कि हिंदू पंचांग में सभी महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। हर महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के पर रखा गया है। आषाढ़ नाम भी पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों पर आधारित हैं। आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं दो नक्षत्रों में रहता है। इसलिए प्राचीन ज्योतिषियों ने इस महीने का नाम आषाढ़ रखा है। अगर पूर्णिमा के दिन उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र हो तो यह बहुत ही शुभ और पुण्य फलदायी संयोग माना जाता है। इस संयोग में दस विश्वदेवों की पूजा की जाती है।
- इस महीने के देवता सूर्य और भगवान विष्णु के अवतार वामन है। इसलिए आषाढ़ महीने में इनकी ही पूजा और व्रत करने का महत्व बताया गया है। इस महीने में भगवान वामन और सूर्य की उपासना के दौरान कुछ नियमों को भी ध्यान में रखना चाहिए। जैसे रविवार को भोजन में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस महीने में ज्यादा मसालेदार भोजन से भी बचना चाहिए। इसके साथ ही ब्रह्मचर्य के नियमों का पालना चाहिए। तामसिक चीजों और हर तरह के नशे से भी दूर रहना चाहिए। आषाढ़ महीने में सूर्योदय से पहले उठकर नहाने का बहुत महत्व है। इस महीने में सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और ध्यान की मदद से उर्जाओं को नियंत्रित कर के खुद को नीरोगी रखा जा सकता है।
स्कंदपुराण के अनुसार क्या करें
स्कंदपुराण के अनुसार आषाढ़ महीने में एकभुक्त व्रत करना चाहिए। यानी एक समय ही भोजन करना चाहिए। इसके साथ ही संत और ब्राह्मणों को खड़ाऊ (लकड़ी की चरण पादुका) छाता, नमक तथा आंवले का दान करना चाहिए। इस दान से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही लाल कपड़े में गेहूं, लाल चंदन, गुड़ और तांबे के बर्तन का दान करने से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं।
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