Wednesday, 30 September 2020

जो लोग असंतुष्ट रहते हैं, वे हमेशा अशांत रहते हैं, हमारे पास जितना धन और सुख-सुविधाएं हैं, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए, यही सुखी जीवन का सूत्र है



जो लोग अपनी चीजों से संतुष्ट रहते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं। अगर कोई व्यक्ति दूसरों की चीजों के प्रति आकर्षित होता है और खुद की सुख-सुविधाओं को महत्व नहीं देता है, हमेशा असंतुष्ट रहता है तो वह कभी भी सुखी नहीं हो सकता है। एक लोक कथा के अनुसार ये बात एक संत ने राजा को बताई थी। जानिए ये लोक कथा…
कथा के अनुसार पुराने समय एक राजा अपने जन्मदिन पर बहुत खुश था। उसने सोचा कि आज मैं किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी करूंगा। राजा के जन्मदिन पर दरबार में भव्य आयोजन हुआ। प्रजा अपने राजा के जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए दरबार में पहुंची थी।
प्रजा के साथ ही एक संत भी वहां पहुंचे। संत ने राजा को जन्मदिन को शुभकामनाएं दीं। राजा ने संत से कहा कि गुरुदेव आज मैं आपकी सारी इच्छाएं पूरी करना चाहता हूं। आप मुझसे कुछ भी मांग सकते हैं। संत ने राजा से कहा महाराज मुझे कुछ नहीं चाहिए।
राजा ने संत से फिर कहा कि गुरुदेव मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है, आप नहीं इच्छाएं बताएं, मैं उन्हें जरूर पूरी करूंगा। राजा जिद कर रहा था तो संत ने कहा कि ठीक है राजन्, मेरे इस पात्र को स्वर्ण मुद्राओं से भर दो।
राजा ने कहा कि ये तो बहुत छोटा काम है। मैं अभी इसे भर देता हूं। राजा ने जैसे ही अपने पास रखी हुई मुद्राएं उसमें डालीं, सभी मुद्राएं गायब हो गईं। राजा ये देखकर हैरान हो गया।
राजा ने अपने कोषाध्यक्ष को बुलाकर खजाने से और स्वर्ण मुद्राएं मंगवाईं। राजा जैसे-जैसे उस बर्तन में स्वर्ण मुद्राएं डाल रहा था, वे सब गायब होती जा रही थीं। धीरे-धीरे राजा का पूरा खजाना खाली हो गया, लेकिन वह बर्तन नहीं भरा।
राजा सोचने लगा कि ये कोई जादुई पात्र है। इसी वजह से ये भर नहीं पा रहा है। राजा ने संत से पूछा कि इस बर्तन का रहस्य क्या है? मेरा पूरा खजाना खाली हो गया, लेकिन ये भरा नहीं। ऐसा क्यों?
संत ने कहा कि महाराज ये पात्र इंसान के मन का प्रतीक है। जिस तरह हमारा मन धन, पद और ज्ञान से कभी भी नहीं भरता है, ठीक उसी तरह ये पात्र भी कभी भर नहीं सकता।
हमारे पास चाहे जितना धन आ जाए, हम कितना भी ज्ञान अर्जित कर लें, पूरी दुनिया जीत लें, तब भी मन की कुछ इच्छाएं बाकी रह जाती हैं। हमारा मन इन चीजों से भरने के लिए बना ही नहीं है।
संत ने आगे कहा कि जब तक हमारे मन भक्ति की भावना नहीं आती है, तब तक ये खाली ही रहता है। इसीलिए व्यक्ति को इन सांसारिक चीजों की ओर नहीं भागना चाहिए। हमारी इच्छाएं अनंत हैं, ये कभी पूरी नहीं हो पाएंगी। इसीलिए जिस स्थिति में हैं, उसी में प्रसन्न रहना चाहिए। यही सुखी जीवन का सूत्र है। संतुष्ट रहें और भगवान की ओर मन लगाना चाहिए।

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


Motivational story about happiness, how to be happy in life, life management tips in hindi, inspirational story about money and success

from Dainik Bhaskar
https://ift.tt/33hnV5W

No comments:

Post a Comment

कैसे तोड़ें ? - मन और जगत के बंधन को || How to break the bond between mind and world?

श्री राम जय राम जय जय राम श्री राम जय राम जय जय राम  सच्चिदानंद भगवान की जय। सनातन धर्म की जय।  अभी-अभी आप बहुत सुंदर कथा सुन रहे थे। मेरे क...