सोमवार, 27 जुलाई को गोस्वामी तुलसीदास की जयंती है। तुलसीदासजी ने श्रीरामचरित मानस की रचना की थी। उनके संबंध में माना जाता है कि उन्हें श्रीराम और हनुमानजी ने साक्षात् दर्शन दिए थे। हनुमानजी की मदद से तुलसीदासजी ने श्रीराम के दर्शन किए थे। तुलसीदास भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाते थे। एक बार वे काशी में श्रीराम कथा सुना रहे थे, तभी उनकी भेंट हनुमानजी से हुई। हनुमानजी ने कहा कि श्रीराम के दर्शन चित्रकूट में होंगे। ये सुनकर तुलसीदास चित्रकूट के रामघाट पर पहुंच गए।
एक दिन तुलसीदास रामघाट पर बैठे हुए थे। तभी वहां दो सुंदर युवक दिखाई दिए। उन युवकों को देखकर तुलसीदास मंत्रमुग्ध हो गए, उन्हें कुछ भी ध्यान ही नहीं रहा। जब वे दोनों युवक वहां से चले गए, तब वहां हनुमानजी आए और उन्होंने बताया कि ये दोनों श्रीराम और लक्ष्मण ही थे।
हनुमानजी की बात सुनकर तुलसीदास को बहुत दुख हुआ कि वह श्रीराम को पहचान नहीं सके। तुलसीदासजी को दुखी देखकर हनुमान ने कहा कि चिंता न करो, कल सुबह फिर श्रीराम और लक्ष्मण के दर्शन होंगे।
अगले दिन माघ महीने की मौनी अमावस्या थी। रामघाट पर नदी में स्नान करने के बाद तुलसीदास वहीं बैठकर लोगों को चंदन लगा रहे थे। तभी वहां बाल रूप में श्रीराम तुलसीदास के पास आए और बोले कि बाबा हमें चंदन नहीं लगाओगे?
हनुमानजी ने सोचा कि आज भी कहीं तुलसीदास भगवान को पहचानने में भूल न कर दे, इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे ‘चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर।
श्रीराम ने स्वयं तुलसीदास का हाथ पकड़कर खुद के सिर पर तिलक लगा लिया और तुलसीदास के माथे पर भी तिलक लगाया।
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